वोलैटिलिटी क्या है?
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- अगर आप रोज मार्केट का लेवल देखेंगे तो लगेगा कि उतार-चढ़ाव पहले से ज्यादा है? आंकड़ों से तो इसका जवाब फटाफट निकाला जा सकता है।
मार्केट में निरपेक्ष वोलैटिलिटी का पता लगाने के लिए अलग-अलग पीरियड में मार्केट में रोजाना के उतार चढ़ाव (डेली स्विंग) के स्टैंडर्ड डेविएशन की तुलना की जा सकती है।
मैंने मार्केट्स के प्रॉक्सी के लिए बीएसई सेंसेक्स का इस्तेमाल किया है क्योंकि इसी इंडेक्स का इतिहास सबसे लंबा है। इसका कैलकुलेशन 1979 में शुरू हुआ था। मैंने 1980 से 2015 तक के पीरियड को पांच-पांच साल के सात ब्लॉक में बांटा है और सबमें वोलैटिलिटी का डेली, वीकली और मंथली रिटर्न कैलकुलेट किया है। नतीजे मजेदार रहे थे।
- डेली रिटर्न का स्टैंडर्ड डेविएशन 1980-85 में 1.1 था, जो बाद के पांच पांच वर्षों के ब्लॉक में क्रमश: 1.7, 2.3, 1.7, 1.7, 2.0 और 1.0 रहा। सबसे ज्यादा स्टैंडर्ड डेविएशन 1990-1995 और फिर 2005-10 के ब्लॉक में रहा। यही कैलकुलेशन वीकली रिटर्न के आधार पर करने से पांच-पांच साल के सात ब्लॉक में 2.0, 3.0, 4.4, 3.3, 3.1, 3.7, 2.0 का स्टैंडर्ड डेविएशन मिला। मतलब इस बार भी पैटर्न एक ही रहा। कृपया ध्यान दें कि हर सीरीज की तुलना उसी के अंदर की जानी चाहिए।
- आंकड़ों से सारी बातें साफ हो जाती हैं। इंडियन इक्विटी मार्केट में सबसे ज्यादा वोलैटिलिटी पहले 1990-1995 और फिर 2005-10 में देखी गई। असल में आप पांच साल के ब्लॉक के बजाय हर साल की वोलैटिलिटी पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि इंडियन इक्विटी मार्केट के पूरे इतिहास में सिर्फ पांच या छह साल ही बहुत तेज उतार-चढ़ाव हुआ। ये साल हैं: 1990-92, 2000 और 2008-09। इन्हें छोड़ दिया जाए तो बाकी बचे हर साल मार्केट में लो से मीडियम वोलैटिलिटी रही है। इस तरह इस बात का कोई सबूत नहीं मिलता कि बाजार में उतार चढ़ाव की तीव्रता बढ़ रही है।
- तो फिर लोगों को ऐसा क्यों लग रहा है कि इक्विटी मार्केट में उतार-चढ़ाव बढ़ गया है? मेरे हिसाब से इसकी दो या तीन वजहें हो सकती हैं। लोग पर्सेंटेज के बजाय नंबरों पर ज्यादा रिएक्ट करते हैं। सेंसेक्स पहले एक दिन बहुत तेज उतार-चढ़ाव 100 प्वाइंट्स तक सीमित रहता था, जो अब 400 प्वाइंट्स हो गया है।
पर्सेंटेज के हिसाब से दोनों बदलाव बराबर हो सकते हैं लेकिन प्वाइंट्स के हिसाब से आजकल का एक दिन का बदलाव बहुत ज्यादा लगता है। मीडिया में इस्तेमाल होने वाले लीनियर ग्राफ से लोगों को ऐसा ही लगता है। 1990 की शुरुआत का 50 प्वाइंट का स्विंग ग्राफ पर आज के 500 प्वाइंट्स के दसवें हिस्से के बराबर जैसा होता है। हालांकि, पहले वाला स्विंग 5 पर्सेंट होता था और आज वाला सिर्फ 1 पर्सेंट होता है।
दूसरी मनोवैज्ञानिक वजह यह हो सकती है कि नई घटनाएं पुरानी से ज्यादा असरदार होती हैं। एक दशक पहले के स्विंग लोगों को याद नहीं होंगे, लेकिन आज वाले सब की नजरों में चढ़ रहे हैं।
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